"बचपन से ही मुझे भी ये सिखाया गया था कि मुसलमानों से दूर रहना"



हाँ ! मै नास्तिक, धर्म मुक्त, और तार्किक हूँ। और मुझे गर्व है अपनी और अपने जैसे उन सभी लोगों की सोच पर जो किसी तथा कथित भगवान या अल्लाह के स्थान पर विज्ञान को मानते हैं। आप सभी की तरह बचपन से ही मुझे भी यही सिखाया गया था कि भगवान नाम की एक अज्ञात  शक्ति है, जो हर समय हमारे चारों ओर रहती है। बचपन से मुझे भी ये सिखाया गया था कि मुसलमानों से दूर रहना, और किसी के बुरे समय में उसके लिए प्रार्थना करना दुआ नहीं।

बाकि जितनी कसर बाकी रह गयी थी वो स्कूल ने पूरी कर दी। जाति और धर्म के नाम पर होने वाला भेदभाव आप भारत के स्कूलों में प्रत्यक्ष देख सकते हैं। स्कूल में सिखाया जाता कि सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। यही सोच कर हम सभी हमेशा उस पत्थर के पास जाकर प्रार्थना करते। लेकिन धीरे धीरे समझ आने लगा था कि ये वाली सरस्वती छोटी है, इसलिए इनके पास ज्यादा ज्ञान नहीं है, शायद महाविद्यालय की सरस्वती ज्यादा ज्ञानी होगी।

कुछ दिन उस पत्थर को भी पूजा। इच्छा पूरी करवाने के लिए व्रत रखे। लेकिन धीरे धीरे समझ आने लगा कि अपनी इच्छा पूरी करने के लिए व्रत या तथाकथित भगवान की नहीं मेहनत की जरूरत है। मुझे नास्तिक  बनाने में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है। फेसबूक पर एक ऐसे शख्स से मिली जिनके विचारों ने मेरी सोच को एक नयी दिशा दी।

उन सभी का तहे दिल से धन्यवाद जिन्होने नास्तिक और धर्म मुक्त  बनने में मेरी मदद की। याद रखिए!  ईश्वर और धर्म मनुष्य से बनता है, मनुष्य ईश्वर से नहीं। मानव के बिना ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं। इसलिए वहम छोड़िए नास्तिक बनिए, क्योंकि हम नास्तिक किसी तथाकथित भगवान को खुश करने के लिए बेजुबानों की बलि नहीं देते।

हम धर्म के नाम पर दंगे नहीं करते। हम अपनी बुद्धि, विवेक का प्रयोग करते हैं और मेहनत से कमा के खाते हैं भगवान के नाम पर भीख नहीं मांगते। धर्म तभी खत्म हो जाता है, जब आप धर्म पर सवाल करते हैं। और विज्ञान सवालों से ही शुरू होता है। जिस भगवान के मैसेज को आप 11 लोगो को शेयर करने का ज्ञान देते फिरते हैं वह शेयर करने की चीज विज्ञान की देन है।

 – मोनिका पाण्डेय

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