1984 के काले दौर के समय में मुझे एक एक अंग्रेजी की किताब Begone Godmen मिली थी। मैंने वह
किताब पढ़ी और इसने मेरे मन पर गहरी छाप छोड़ी। मैंने वह किताब पढ़ने के लिए किसी ऐसे
दोस्त अध्यापक को दी जिसके बारे में यह प्रसिद्द था कि वह तो, ‘बाल की खाल’ निकालने में माहिर है। उसने
वह किताब पढ़ी व कहने लगा कि “मुझे यह किताब पंजाबी में चाहिए और मैं यह पांच सौ रूपये में भी खरीद सकता हूँ।”
मैंने उससे पूछा कि “तुम तो किसी चीज पर दो पैसे
खर्च नहीं करते। तुम इसपर इतने पैसे खर्च करने के लिए क्यों तैयार हो?” तो वह कहने लगा, “मैंने
इस किताब से पंद्रह सौ रूपये कमाने हैं।” वह कैसे ? “मेरी पत्नी एक ज्योतिषी के चक्कर में पिछले तीन वर्षों से फंसी हुई है और वह
मेरे घर में तीन हज़ार रूपये ठग चूका है। दो वर्ष के उसके उपाय बताये हुए हैं।
जिसका मतलब है दो हज़ार रूपये और ले के जायेगा। इस लिए मैं पांच सौ रूपये खर्च करके
पंद्रह सौ रूपये कमा सकता हूँ।”
उसके द्वारा कही गई इस बात से प्रभावित होकर ही मैंने इस किताब का अनुवाद
सरजीत तलवार की सहायता से कर लिया और ‘...ते देव पुरुष हार
गए’ के नाम पर पंजाबी में छापी। किताब छपने पर लोग काफिले बना कर हमारे घरों को
आने लगे। इस प्रकार लोगों से सीखकर उनको सिखाने का सिलसिला तर्कशील लहर का विस्तार
करता गया। किताब ‘...और देव पुरुष हार गए’ के बाद हमने डॉ. अब्राहम टी. कोवूर जी
की दूसरी किताब ‘देव और दानव’ का भी पंजाबी अनुवाद करके प्रकाशित की। इस किताब को
भी पाठकों से भरपूर प्रोत्साहन मिला। पाठकों की मांग पर ही हमने इन किताबों का
हिंदी में अनुवाद किया।
– मेघ राज मित्तर