यह वाक्यांश मनुस्मृति के 8वें अध्याय के 15वें श्लोक से लिया गया है। मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन ग्रन्थ है। यह सर विलियम जोन्स द्वारा 1776 में
अंग्रेजी में अनुवादित किया गया। यह उन प्रथम संस्कृत ग्रंथों में से एक था,
जिसका उपयोग ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा हिंदू कानून बनाने के
लिए किया गया था। पूरा श्लोक इसप्रकार है –
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।
वाक्यांश
का अर्थ है, जो लोग ’धर्म’ की रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा स्वयं हो जाती है। इसे ऐसे भी कहा जाता है, ‘रक्षित
किया गया धर्म रक्षा करता है’। यहाँ ‘धर्म’ शब्द से आशय हिन्दू, इस्लाम, बौद्ध, जैन,
ईसाई आदि से नहीं है।
धर्म का
आशय है, व्यक्ति के अपने कर्त्तव्य, नैतिक नियम, आचरण आदि। जो व्यक्ति इनका पालन
करता है, वह धर्म की रक्षा करने वाला होता है। प्राचीन धर्मशास्त्रों में धर्म के
स्वरुप का विभिन्न रूप से वर्णन किया गया है। यह व्यक्ति के समाज में विशेष कर्म,
कर्तव्य, आचरण आदि से जुड़ा है।
मनुस्मृति
में ही सामाजिक नियमों और कर्तव्यों को प्रत्येक व्यक्ति के समाज में उसकी स्थिति
के हिसाब से अलग अलग बताया गया है। यह वर्ण आधारित, लिंग आधारित, राजा-प्रजा
आधारित, रिश्ते आधारित, उम्र आधारित आदि है। सबके लिए अलग अलग कर्त्तव्य और कार्य
तय किये गए हैं।
ब्राह्मण
का कार्य अथवा कर्त्तव्य क्षत्रिय से सर्वथा अलग है, उसी प्रकार वैश्य और शुद्र के
कार्य भी अलग-अलग बताये गए हैं। ठीक इसी तरह से एक स्त्री के कर्त्तव्य पुरुष से
अलग है। चूँकि ये सब कर्तव्य धर्म और विधान से जुड़ा है, इसलिए इसे चुनौती देना
धर्म की अवमानना करना समझा जाता था। इसके लिए दण्ड तक का विधान था। इस व्यवस्था के आधार पर, व्यक्ति जन्म से ही ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र हो जाता था तथा उसके कर्म व कर्त्तव्य उसी के अनुसार पालन
करने होते थे।
धर्म का जो अर्थ सिद्धान्त में कर्त्तव्य, नैतिक नियम, आचरण आदि थे, वह व्यव्हार में बाध्यकारी सामाजिक नियम,
सीमायें, विशेषाधिकार, वर्जनाएं आदि थे। आजकल भारत में
धर्म का अर्थ जरुर हिन्दू धर्म, ईस्लाम, बौद्ध, जैन, ईसाई आदि है। यदि आज के
सन्दर्भ में उस वाक्यांश का अर्थ लेंगे, तो कर्त्तव्य से सर्वथा अलग होगा वह (हिन्दू,
ईस्लाम, बौद्ध, जैन, ईसाई आदि) धर्म की रक्षा करना जैसा हो गया है।
यह लेख
आपको कैसे लगा? आप कॉमेंट्स में बताने की कृपा करेंगे। यदि आप अपने
नास्तिक बनने की कहानी अथवा तर्कशील सोच पर अपना कोई अनुभव हमसे साझा करना चाहते
हैं, तो लिख भेजिए हमें nastik@outlook.in पर। हम चयनित लेखों को नास्तिक भारत पर प्रकाशित करेंगे। हमें
आपके ई-मेल का इन्तेज़ार रहेगा।