नास्तिक होना, "जैसे बन्द अंधेरे कमरे से खुले मैदान में कदम रखना"



मैं हिमाचल का रहने वाला हूं ,जिसे कहा जाता है देवों की भूमि "देवभूमि हिमाचल"। यहां पर नास्तिक होना खुद में ही बहुत बड़ी बात है। मेरी उम्र 26 साल है। मैं 20 साल की उम्र में ही नास्तिकता के सफर पर चल पड़ा था। इसकी सबसे बड़ी वजह थी क्योंकि मेरे घर में पूजा-पाठ, मंदिर को लेकर कोई दबाव नहीं था। फिर भी आसपास के वातावरण व समाज का मुझ पर बहुत प्रभाव था।

फिर मेरे मन में भगवान व भगवान के अस्तित्व को लेकर प्रश्न उठने लगे। जिस जगह में रहता हूं, यहां पर देवी-देवताओं में लोगों की बहुत गहरी आस्था है, सभी लोग इन देवी-देवताओं में और इनकी शक्ति में गहरा विश्वास रखते हैं। ऐसे में इन देवी-देवताओं और इनकी शक्ति को नकारना व भगवान के अस्तित्व पर प्रश्न खड़े करना मेरे लिए बहुत कठिन बात थी। परंतु धीरे-धीरे दूसरों के साथ तर्क वितर्क करते हुए मेरा झूठी आस्तिकता के मायाजाल से पर्दा उठता गया।

शुरुआत में नास्तिक होने में बहुत-सी अड़चनें आईं। जैसे तर्क-वितर्क करते हुए आस्तिकों की आस्था पर चोट करना व उनका गंभीर हो जानाआपसी रिश्तों का बिगड़ जानामेरे तर्कों पर सहमति ना रखनावाद विवाद में खुद को अकेला महसूस करना व कभी-कभी स्थिति का बहुत ज्यादा गंभीर हो जाना इत्यादि।

नास्तिक हो जाने के बाद, मैं बहुत से बंधनों से मुक्त हो गया। जैसे आते-जाते हुए मंदिरों में हाथ जोड़नापूजा-पाठ करना, भगवान का नाम लेनाहर समय भगवान को याद करनामंदिरों में चढ़ावा चढ़ाना, दान देनाभगवान नाम का डर व रात के अंधेरे से डर लगना इत्यादि। इन सब से मुक्त होना बिल्कुल ऐसे ही था जैसे एक बन्द अंधेरे कमरे से खुले मैदान में कदम रखना।

नास्तिक होकर ही मैंने मानव और मानवता के मूल रूप को जाना। मैंने अपने अनुभव से  यह जाना कि यदि एक कदम भी नास्तिकता की सीढ़ी की तरफ बढ़ाया जाए, तो धीरे-धीरे सारी स्थिति स्पष्ट होने लगती है, धीरे-धीरे हर प्रश्न के जवाब मिलने लगते हैं, फिर चाहे वह प्रश्न किसी भी तरह के क्यों ना हों।

नास्तिक होकर ही मैंने इतने कम समय में जीवन के बहुत से बेहतरीन रंग देखे। और मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हूं कि समाज में नास्तिक लोग जिस तरह से मानवता के पहलू को जान व समझ पाये हैं, वह पहलू आस्तिक हो कर न ही जाना जा सकता है, न ही समझा।

मैं हमेशा से ही यह सोचता था कि कैसे और किस तरह से तार्किक विचारों को बढ़ावा दिया जाए और तर्कशील लोगों को एक मंच प्रदान किया जाए। मुझे आज यह जानकर बहुत खुशी होती है कि "नास्तिक भारत" जैसे फेसबुक पेज व "अनार्य भारत" जैसे यूट्यूब चैनल के माध्यम से हमें एक तार्किक दिशा मिलती है व सभी धार्मिक पाखंडों का मायाजाल देखने को मिलता है।

और अंत में......!!!

नास्तिकता की घोषणा करना और झूठी आस्तिकता से मुक्त हो जाना ही असल मायनों में आज़ादी है। नास्तिक होना ही खुद में ही बहुत बड़ी चुनौती है और एक बेहद खूब विशेषता भी।

    – रंजीत राठौर
लेखक से उनके ई-मेल rrathour898@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। 

रंजीत राठौर का यह अनुभव/लेख कैसा लगा ? उम्मीद है अच्छा लगा होगा। आपको यदि पसन्द आया हो, तो यहाँ कमेंट्स में अपनी राय रखने की कोशिश करेंगे। नास्तिकता पर बात करना तथा अपनी राय रखना इसलिए भी ज़रूरी है कि आपकी हमारी तरह कई लोग जहाँ-तहां अकेले रह रहे हैं उनके बीच संपर्क सूत्र नहीं हैं ऐसे में नास्तिक भारत का यह प्रयास है कि ऐसे लोगों को एक-दुसरे से जोड़ने में मदद करे साथ ही उनकी बात को दुनिया के सामने रखने में एक प्लेटफार्म का काम करे यदि आप अपने नास्तिक बनने की कहानी अथवा कोई अनुभव हमसे साझा करना चाहते हैं, तो लिख भेजिए, हमें nastik@outlook.in पर। हमें आपके ई-मेल्स का इन्तेज़ार रहेगा।
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