साथियों!
“मैं नास्तिक क्यों हूँ” वाली सीरीज में यह चौथा आलेख है। नास्तिक, तर्कशील और
संशयवादी साथियों के बेहतरीन विचार आ आ रहे हैं। यह देख कर सुखद आश्चर्य हो रहा है
कि अबतक पुरुष से अधिक महिलाओं के लेख आये हैं। चूँकि नास्तिकता व्यक्ति को
तर्कशील सोच वाला बनाता है, ऐसे में धर्म-सत्ता, इसे अपने लिए खतरनाक मानती है और
इसके दमन का प्रयास भी करती है।
आपको याद
ही होगा, पिछले दिनों जब नास्तिकों का जमावड़ा होने पर मधुबन में पुलिस, प्रशासन,
दक्षिणपंथी संघठन आदि सभी ने इसका विरोध किया था और इसे आयोजित होने में दिक्कतें
की थी, जबकि वे लोग शांतिपूर्वक तरीके से इसे आयोजित कर रहे थे। ऐसे में आज इंटरनेट,
सोशल मीडिया, फेसबुक, यू-ट्यूब, व्हात्सप्प जैसे माध्यम तर्कशील आन्दोलन को बढ़ाने
में एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
इंटरनेट
और सोशल मीडिया ने सभी नास्तिकों और तर्कशील सोचने वालों को कनेक्ट करने का भी बड़ा
काम किया है। आपके लेख, आपके कमेंट्स और आपके ऑनलाइन प्रचार-प्रसार से नास्तिकता व
तर्कशील आन्दोलन तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। एक दिन
आएगा, जब भारत से आडम्बर, अंधविश्वास, धर्म-आधारित शोषण आदि का नामोनिशान मिट
जायेगा। एक तर्कशील और मानवीय दुनिया बन कर रहेगी। यह सब आपके और हमारे क्रियाशील
हुए बिना संभव नहीं है। चलिए अब “मैं नास्तिक क्यों हूँ” की इस कड़ी में राजबाला
त्रिपाठी के विचारों से रूबरू होते हैं। (सम्पादकीय
टिपण्णी)

मैं
नास्तिक हूँ, क्योंकि –
1. मुझे
कोई काल्पनिक फ़्रेंड, स्काई डैडी या ममी की जरूरत नहीं है।
2. अपनी
सफलता की श्रेय के लिये या विफलता की दोष के लिये मैं किसी अदृश्य, काल्पनिक सत्ता
की तरफ उंगली नहीं दिखाती। उसकी जिम्मेदारी मैं खुद लेती हूँ।
3. सुबह
शाम काठ-पत्थर की गुडिया लेकर पूजा-पाठ, अगरबत्ती, दीया जलाना आदि जैसे खेल शुरू नहीं कर देती।
4. काठ-पत्थर
की कुछ मूर्तियां खुद बनाके, उसके आगे सुबह शाम को गुलाम की तरह सिर नहीं झुकाती।
5. धर्म
शास्त्रों में दिया गया अद्भुत भ्रांतकथाएं सुनकर एन्जॉय करती हूं, पर उसपर कभी यकीन
नहीं करती।
6. काठ-पत्थर
की मूर्तियों को रिश्वत देने से सफलता मिलेगी, ये सोच के बैठी नहीं रहती। अपने
जीवन में सफलता के लिये खुद प्रयास करती हूँ।
7. एक
पुरूष के हाथ, पैर और मुँह से विभिन्न कास्ट के मनुष्य पैदा हुए हैं,
ऐसी अजीब बातों से विश्वास करके, किसी भी इंसान को ऊँचा या नीचा
नहीं समझती। सारे असमानता को अस्वीकार करते हुए, सब इंसान एक समान होते हैं, इसपर यकीन करती हूँ।
8. किसी
काल्पनिक सत्ता द्वारा नहीं, जीबन प्राकृतिक उपाय से पृथ्बी में अणु परमाणु से शुरु हुआ
है और इंसान मरने के बाद अणु और परमाणु में तब्दील हो जाता है। मैं इसमे यक़ीन करती
हूं और आत्मा-परमात्मा जैसे बेतुकी बात पर यकीन नहीं करती।
9. मरने
के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होगी, इस पृथ्वी में रखा क्या है। इस तरह काल्पनिक होकर सिर्फ मौत
के बाद की जिंदगी के लिये जीते जी मरे हुए जैसे नहीं जीती। मैं पूर्वजन्म,
पुनर्जन्म में यकीन नहीं करती। मेरे लिए यह जिंदगी एक बार ही मिली है। मैं इसे मानवता
के कल्याण के लिये यथा-संभव उपयोग करती हूँ।
10. मुझे
पूण्य प्राप्त होगा, बस यह सोचते हुये, मैं किसी की हेल्प या कुछ दान नहीं करती। मैं दान और
हेल्प मानवता की खातिर करती हूँ। न मुझे नर्क का भय भयभीत करता है, न स्वर्ग का
सुख ललचाता है। जो मानवता के लिये सही है, वह मैं बेझिझक करती हुँ और एक भयमुक्त
खुशहाल जिंदगी जीती हूँ।
नास्तिकता
बिल्कुल आसान नहीं होता है। यह इंसान की विचारशक्ति का सबसे ऊँचा स्तर है। तर्क और
ज्ञान इंसान को नास्तिकता के रास्ते की ओर ले जाते हैं। एक बार उस रास्ते में कदम
रखने के बाद मनुष्य कंधों पर लदे सारे अंधविश्वास, कुसंस्कार, धर्म, पाप-पूण्य, स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म, आत्मा-परमात्मा जैसे बोझ से मुक्त होकर सच में जिंदगी जीना शूरु
करता है। इसलिए मानवता
की जय हो! नास्तिकता की जय हो!
– राजबाला त्रिपाठी
लेखिका 'नास्तिकता
प्रचार अभियान' से जुडी हैं तथा तर्कशील और वैज्ञानिक सोच को समाज में बढ़ाने के लिए
सक्रिय हैं।
नास्तिक और तर्कशील साथियों! लेखिका
के नास्तिक होने के तर्क आपको कैसे लगे ? आप
कॉमेंट्स में बताने की कृपा करेंगे। यदि आप अपने नास्तिक बनने की कहानी अथवा कोई
अनुभव हमसे साझा करना चाहते हैं, तो लिख भेजिए, हमें nastik@outlook.in पर।
हमें आपके ई-मेल्स का इन्तेज़ार रहेगा।