मैं
राजस्थान का रहने वाला हूँ, राजस्थान में सबसे ज्यादा पाखण्ड है। मेरी उम्र 27 साल है। मैं एक वर्ष से नास्तिकता के सफ़र पर चल रहा हूँ। मेरे घर में
पूजा-पाठ-मन्दिर-भगवान में विश्वास को लेकर आज भी दबाव बनाया जाता है। लेकिन वो जब
भी बात छिड़ती है, बहस शुरू हो जाती है। मेरे परिवार में देवी-देवताओं में एवं
दैवीय शक्तियों में गहरा विश्वास रखते हैं। ऐसे में इन देवी-देवताओं और इनकी शक्ति
को नकारना व भगवान के अस्तित्व पर प्रश्न खड़े करना मेरे लिए बहुत कठिन बात थी।
नास्तिक
होने से आज भी बहुत सी अड़चनें आती हैं। आज भी दोस्तों-परिजनों से बात करते
देवी-देवताओं पर कटाक्ष करना एवं उनका मेरी बातों पर सहमत न होना कभी-कभी बहस में
अकेला महसूस करना इत्यादि।
मैं भी
पहले मन्दिरों में भगवान के दर्शन के लिए जाया करता था, लेकिन जब मैंने कई ऐसी
घटनाएं देखीं तब से आस्था ख़त्म हो गयी। अगर वास्तव में भगवान है, तो
गरीब-अबला पर हो रहे अत्याचारों के लिए दोषियों को दण्ड क्यों नहीं देते, क्यों
उन्हें भगवान का डर नहीं है?
इन्सान
का सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है, लेकिन यहाँ इंसानियत किसी में नहीं है एवं धर्म के
नाम पर धंधा चलाया जाता है। अन्धविश्वास की ओर धकेला जाता है।
इस
ब्रह्माण्ड में कोई ईश्वर नहीं है।
– गौतम बुद्ध
– राजु सालवी, राजस्थान
इस
लेख में व्यक्त किये गए विचार लेखक के अपने हैं। यह जरुरी नहीं कि ‘नास्तिक भारत’ भी उनके विचार से सहमत हो। हालाँकि उनके विचार व्यक्त करने के अधिकार का नास्तिक भारत सम्मान करता है और
उसे स्थान उपलब्ध करवाना विचारों के उन्नयन के लिए आवश्यक समझता है।
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