बहुत सारे मित्रों की यह फरियाद रहती है,
कि यार! हम तो नास्तिक हैं, ईश्वर को नहीं
मानते, लेकिन मेरी जो जो पत्नी है वो समझने को तैयार ही नहीं है। पति है वो समझने
को तैयार नहीं। बॉयफ्रेंड है, वह नहीं समझता है। गर्लफ्रेंड तो नास्तिकता और तर्क
पर बात करने से गाली देती है। वो ईश्वर, मंदिर,
पूजा-पाठ में से बाहर ही नहीं निकलती है। अल्लाह और धर्म पर सुनने
को ही तैयार नहीं होती है। घर का माहौल ही ख़राब हो गया है। कोई बात सुनने को तैयार
ही नहीं है। यार! जीने का मजा ख़राब हो गया है।
तस्वीर Homegrown से साभार। |
बात तो सही है। पति-पत्नी के बीच एक समान विचारधारा हो, तो काम करने में मजा आता है। अलग अलग व्यक्ति हैं। अलग अलग विचार हो सकते हैं। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। लेकिन पति रेसनालिस्ट अथवा तर्कशील हो और पत्नी घर में स्वामी नारायण की कथा करवाये, दिन-रात यज्ञ-हवन में डूबी रहे, तो पति महाशय का तर्कशील होने का कोई मतलब नहीं है।
इसी प्रकार पत्नी भी नास्तिक अथवा तर्कशील है, तो घर परिवार में एडजस्ट करना
मुश्किल हो सकता है। नास्तिकता और तर्कशीलता पर बात करने से लोग कहेंगे, पहले आप
अपने परिवार को तो समझा दीजिये, फिर दुनिया को समझाने के लिए निकलना। इस मुद्दे का
उत्तर देना मुश्किल हो जाता है। इसलिए पूरा परिवार एक समान विचारधारा वाला हो, तो
जीने का आनन्द बढ जाता है। अगर एक विचारधारा का नहीं भी हो, तो कमसे कम वैज्ञानिक
सोच वाला और तर्कशील हो तो, जीने का मज़ा आता है। नहीं तो रोज का बेकार का खटपट
चलता रहता है।
लेकिन यह कैसे किया जाय? परिवार में कैसे लाया जाय तर्कशील चिंतन और वैज्ञानिक
समझ तथा विचारधारा? यहाँ कुछ सुझाव दिया जा
रहा है। यह जो सुझाव है, वह अनुभव से दिया जा रहा है क्योंकि मेरा पूरा परिवार तार्किक
और रेसनालिस्ट है। समाजवादी है और इन्सान इन्सान के बीच शोषण के खिलाफ है। आप निम्न सुझाओं पर अमल करें, आपकी समस्या दूर होने की पूरी सम्भावना है।
(1) पहली बात यह कि घर में धार्मिक माहौल न रखें। धर्मों की बात को, धार्मिक
सीरिअल, बाबा लोग, धार्मिक ग्रंथ, फोटो, पूजा-पाठ आदि को न करें। आपकी पत्नी अथवा पति ऐसा करता हो, तो इसका कतई
विरोध न करें। व्रत उपवास न करें, पर पति/पत्नी को ऐसा करने से मना भी नहीं करें। पर
उन पर चर्चा करने का माहौल ज़रूर बनाएं। जैसे किसी त्यौहार को क्यों मनाते हैं?
धर्म में फलाने कर्मकाण्ड का होने से क्या फायदा है? धर्म में पति के लिए अलग
मानदण्ड हैं और पत्नी के लिए अलग, ऐसा क्यों है? धर्म के आधार पर भेदभाव क्यों
हैं? अंधविश्वास क्या है? वैज्ञानिक चिन्तन और तर्कशील होना क्यूं ज़रूरी है? इन
विषयों पर चर्चा करें।
(2)
आप हर तरह के तर्क के लिए तैयार रहिए। खूब पढ़ाई करे। अपने आप को
पूर्ण रूप से तर्क संगत बनाइए। परिवार को हर बात समझाइए। उनके विचारों का कतई दमन न कीजिये। हर बात का अच्छे से, तर्कपूर्ण ढंग से
और वैज्ञानिक रूप से उदहारण सहित ज़वाब दीजिये।
(3)
ईश्वर है कि नहीं उस प्रश्न पर बात कीजिये। उनसे पूछिये कि उनको
क्यों लगता है कि ईश्वर है? आप अपने तर्क और तथ्य प्रस्तुत करिए और बताईये कि क्यों
आपको लगता है कि ईश्वर नहीं है। ईश्वर नहीं है तो स्रृष्टि का संचालन कौन कर रहा
है, इस प्रश्न का तर्कसंगत उत्तर दिजिये। विज्ञान के नियम के बारे में, विकासवाद
के सिद्धांत के बारे में, बाबाओं के करामातों के बारे में आदि विषय पर बात करिए। पूजा,
कथा-कीर्तन, नमाज़ आदि के फायदों के बारे में उनसे पूछिए।
(4)
धर्म और ईश्वर के मानने के क्या क्या नुकसान हैं, यह बात समझाइए। देश धर्म के नाम पर हुए दंगों, मंदिर-मस्जिद की लडाई, आपसी भाईचारे में
धर्म के कारण आई घृणित भावना की बात उदाहरणों के माध्यम से बताईये।
(5)
ईश्वर दुख दुर नहीं कर सकता है, भूकंप, बाढ़, सूखा आदि जैसी त्रासदी
में क्यों ईश्वर कोई मदद नहीं करता है, यह पूछिये। अमीर-गरीब
में इतना भेदभाव क्यों है? एक आदमी पांच-सितारा होटल में खाता है और एक व्यक्ति
रोटी की कमी के कारण भूख से क्यों मर जाता है, यह बात पूछिये।
(6) अपनी चर्चा में बच्चों को ज़रूर शामिल करें। जितना ज्यादा मत में विभिन्नता
होगी, उतना ही इन्सान को अलग अलग प्रकार की सोच मिलेगी। व्यक्ति अलग अलग तरीके से
धर्म, ईश्वर और समाज के बारे में सोचने को प्रेरित होगा। बच्चे जब कम उम्र के होते
हैं, उनमें नई चीजों के बारे में बहुत जिज्ञासा होती है। वे किसी आडम्बर से बंधे
नहीं होते और तर्कपूर्ण बातों से प्रभावित तथा प्रेरित भी होते हैं। उनमें धर्म और
धर्म के क्रियाकलापों के प्रति कोई आग्रह नहीं होता। ऐसे में बच्चों के साथ बात
करने से विचारों में वृद्धि के साथ, तर्कशीलता और वैज्ञानिक सोच में वृद्धि होगी।
(7) इस तरह की तर्कशील चर्चा पत्नी, पति और बच्चों के
साथ हर सप्ताह कीजिये। धीरे धीरे यह आदतें सबों में विकसित हो जाएगी। कभी-कभी जब
सब सहमत होने लगें, एक विषय चुनकर उसपर एक साथ बैठकर आराम से चर्चा का आयोजन करिए।
(8) आपकी मात्रृभाषा में कुछ अच्छे पुस्तक और चर्चाओं
की सीडी आदि ढूंढ निकालिए। उनको पढ़ने के लिए दीजिये। ऐसी मैगज़ीन घर में लाना शुरू
करें, जिसमें तर्कशील चिंतन करने तथा वैज्ञानिक सोच वाली वाली बात हो। आप रजनीश
ओशो, जे। कृष्णमूर्ति, राहुल सांकृत्यायन, भगत सिंह, कार्ल मार्क्स, लेनिन आदि की
किताबें प्रयोग में ला सकते हैं।
(9) धार्मिक पाखंडों के बारे में, धर्म के आधार पर धन
ठगने और अंधविश्वासों के बारे में न केवल बात करिए, बल्कि उसकी सच्चाई पर से पर्दा
भी उठाईये। आप धर्म कैसे लिंगाधारित भेदभाव करता है, जाति आधारित भेदभाव और शोषण
करता है, नदियों को कैसे कर्मकाण्ड के वस्तुओं से गन्दा करता है आदि के बारे में
तथ्यों व वैज्ञानिक रपटों के माध्यम से बताईये।
(10) घर वालों को ऐसे कार्यक्रमों में ले जाईये,
जिसमें तर्कशीलता, वैज्ञानिक आधार पर जादूटोना की आलोचना और इंसानियत तथा पर्यावरण
पर बात की जाती है। भारत में, पेरियार, ज्योतिबा फुले, भगत सिंह, चार्वाक, गौतम
बुद्ध, स्टीफन हाकिंग आदि के विचारों पर बात होती हो, वहां ले जायें। परिवारजनों
को लेकर जाइए और बताइए कि ऐसे विचार वाले हम अकेले नहीं हैं, बल्कि ऐसे लोगों की
संख्या लाखों में है।
(11) विश्व में ऐसे देशों के उदाहरण दीजिये, जो समृद्ध है, विकसित है, जहाँ के
लोग तर्कशील चिंतन वाले हैं, जहाँ विज्ञान खोजें हुई है आदि। फिर उनको बताईये कि यह
कैसे संभव हुआ है। आप नीदरलैंड और दुसरे स्कैन्डनेवियन देशों के उदाहरण दीजिये कि
कैसे ज्ञान और सम्पन्नता के साथ तर्कशीलता, मानवता, वैज्ञानिकता और नास्तिकता का
विकास होता है।
(12) फेसबुक, व्हात्सप्प
पर जो भी पढ़ने लायक है, वह सब उनके साथ साझा करिए। समाज में चल रहे सामाजिक
आंदोलनों के बारे में बताईये। मानवाधिकार, पर्यावरण आन्दोलन, फेमिनिज्म, एलजीबीटी
आन्दोलन, लोकतंत्र की अवधारणा, मार्क्सवाद, डार्विन की थ्योरी आदि पर पहले उनको
मटेरियल उपलब्ध करवाईये, फिर बात करना शुरु कीजिये और आखिर में उन सब पर उनसे सवाल
कीजिये। मतलब परिवार से जुड़े रहिए। उनका ज्ञान और समझ को बढ़ाने के लिए खुद भी
मेहनत करिए। कभी भी उनका असम्मान न करिए। ऐसा भी नहीं कहिये कि उनकी समझ में नहीं
आयेगा अथवा वो गलत हैं। बस लगातार उनकी सोच समझ और तर्कशीलता का विकास कीजिये।
यदि आपने उपरोक्त बातें प्यार और सम्मान के साथ किया। आपके तर्क और वैज्ञानिक
समझ में दम है, तो एक दिन आपका पूरा परिवार तर्कशील और वैज्ञानिक चिन्तन वाला हो
जायेगा। इस कार्य में, हो सकता है चार-पांच साल भी लग जाये। यह भी संभव है कि एकाध
सदस्य आपकी बातों के बात भी आपसे सहमत नहीं हो। ऐसे में आप जबरदस्ती कतई नहीं करें।
हर व्यक्ति को अपनी बात मानने और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। इसलिए
प्रत्येक व्यक्ति एक दुसरे के विचार, भावना और व्यावहार का सम्मान करें। यह गलतफहमी
न पालें कि आपके हिसाब से ही दुनिया चलेगी। देखिये! आपका परिवार तर्कशील भी होगा और नए विचारों का सम्मान करने वाला
भी बनेगा।
– शेषनाथ वर्णवाल
यह लेख अनिल पटेल के एक कमेन्ट से प्रभावित है, इसके लिए लेखक की तरफ से उनका आभार।
यह लेख आपको कैसा लगा, बताईये हमें कमेन्ट कर। यदि आप हमें कोई लेख भेजना चाहते हों, नास्तिकता पर अपने अनुभव साझा करना चाहते हैं अथवा कोई अन्य बात करना चाहते हों, तो आप अपना ई-मेल हमें भेज सकते हैं nastik@outlook.in पर। हमें आपके लेख/ अनुभव/ कमेन्ट का इन्तेज़ार रहेगा।
– शेषनाथ वर्णवाल
यह लेख अनिल पटेल के एक कमेन्ट से प्रभावित है, इसके लिए लेखक की तरफ से उनका आभार।
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