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नास्तिक होना अनैतिक होना है अथवा नैतिक? तस्वीर पिक्सबे से साभार। |
भारत में नास्तिक को लेकर तरह तरह के सोच है। कोई कुछ मानता है, कोई कुछ। यह
पश्चिम के एथिस्ट जैसा आसान नहीं है। इसलिए कई लोग नास्तिक लोगों के बारे में भी तरह
तरह की भ्रांतियां पालते हैं। मसलन कि
वे अनैतिक मनुष्य होते हैं और मूल्यहीन कार्य को बढ़ावा देते हैं। समाज और देश के
लिए खतरनाक होते हैं। सच शायद ऐसा नहीं है। यह आप नास्तिक के बारे में भारत में व्याप्त विभिन्न संकल्पनाओं को पढ़ने और कुछ तर्कों पर गौर करने के बाद शायद समझ जायेंगे।
हम नास्तिक अच्छे होते हैं या बुरे, नैतिक होते हैं या अनैतिक, मानवता में
यकीन रखते हैं या नहीं आदि पर बात करें, उससे पहले नास्तिक किसे कहते हैं, स्पस्ट
करने का प्रयास करते हैं। नास्तिक के बारे में भारत में कई प्रकार की
संकल्पनायें अथवा समझ लोगों में है –
एक संकल्पना के अनुसार, नास्तिक शब्द दो शब्दों के मेल से बना है – नास्ति + क। 'नास्ति' का अर्थ है कि 'जो नहीं है' और 'क' का अर्थ है 'यकीन करने वाला'। इस तरह से इसका अर्थ हुआ जो यह मानता है कि नहीं है अथवा स्तित्व नहीं है।
यहाँ अभिप्राय है, वैसे लोग जो मानते हैं कि इस संसार को चलाने वाला कोई नहीं हैं। कोई ईश्वर, कोई देवी-देवता आदि नहीं हैं। कोई भी
अलौलिक शक्ति नहीं है, जो सृष्टि करती है। उसका सञ्चालन और नियंत्रण करती है। चूँकि नास्तिक ईश्वर में यकीन नहीं करते, इसलिए
इन्हें प्रायः अनीश्वरवादी भी कह दिया जाता है।
दूसरी संकल्पना के अनुसार, जो भी व्यक्ति वेद की सत्ता में यकीन नहीं करता,
उसे भी नास्तिक कहा जाता है। इन्हें भी प्रायः अनीश्वरवादी कहा जाता है। भारत में
बौद्ध, जैन तथा चार्वाक दर्शनों को इसी कारण से नास्तिक अथवा अनीश्वरवादी दर्शन की
संज्ञा देते हैं।
विवेकानंद ने उपरोक्त दोनों संकल्पनाओं से अलग एक संकल्पना दी। उन्होंने कहा जो व्यक्ति खुद में यकीन नहीं करता, वह नास्तिक है। उनके लिए ईश्वर में यकीन करना अथवा नहीं करना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं था, पर खुद में यकीन करना ज़रूरी था।
कुछ लोग नास्तिक को नकारात्मक मानने के कारण अथवा चीजों को बिना तर्क के नहीं
मानने के कारण भी नास्तिक कहते हैं। जो नहीं को जीवन का आधार बना ले, जो नकार को जीवन की शैली बना ले। जो हर चीज को सवाल के दायरे में ले आये। ऐसे लोग यूरिपिडस की उस पंक्ति में को मानते हैं, "हर चीज पर सवाल करो, कुछ सीखो और किसी भी चीज का ज़वाब मत दो।"
ऐसे लोग बिना प्रमाण के, बिना वैज्ञानिक तथ्य अथवा अनुभव के किसी चीज में
विश्वास नहीं करते। इसलिए इन्हें भी नास्तिक कहा जाता है। जबकि इनके बारे में, धर्म और ईश्वर में
आस्था रखने वाले लोग कहते हैं कि ईश्वर का दर्शन इतना आसान नहीं है कि वह आसानी से समझ आ जाये। इसके लिए आपको वर्षों तपश्या करनी पड़ेगा। उस लायक बनना पड़ेगा कि ईश्वर आपको दर्शन दें अथवा आपकी समझ में आये। वे लोग यह भी कहते हैं
कि ईश्वर निराकार है, फिर उसका सबूत कैसे दिया जाय। उसे साबित कैसे किया जाय। आपको मानना है तो मानो, नहीं मानना है तो मत मानो।
आईन्स्टाईन कहते हैं, "सवाल पूछना, बन्द नहीं करना महत्वपूर्ण है।" वे यह भी कहते हैं, "कभी भी जिज्ञासा को न त्यागें।" उन्होंने सीखने के बारे में कहा है, "मैं अपने विद्यार्थियों को कभी नहीं सीखाता। मैं सिर्फ उन्हें वह परिस्थिति देने का प्रयास करता हूँ, जिसमें वे सीख सकें।"
शहीद भगत सिंह भी इसी प्रकार की बात करते हैं। वे कहते हैं, "कोई व्यक्ति जो प्रगति के लिए खड़ा है उसे हर पुराने विश्वास की आलोचना करना, उसपर सन्देह करना तथा उसे चुनौती देना होगा।" वे एक जगह कहते हैं, "उसका तर्क एक भूल हो सकती है, गलत हो सकता है, गुमराह करने वाला और कभी कभी निराशाजनक हो सकता है। लेकिन वह सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि कारण जानना उनके जीवन का मार्गदर्शक सितारा होता है। लेकिन केवल आस्था और अन्धश्रद्धा खतरनाक है। यह दिमाग को मंद कर देता है और व्यक्ति को प्रतिक्रियात्मक बनाता है।"
अब बात करते बौद्ध मतावलंबी की। कई बौद्ध मतावलंबी भी नास्तिक कहलाना पसंद नहीं करते। वे भी प्रकृति के नियम, मन की शुद्धता आदि को धर्म कहते हैं। यदि आप धर्म में यकीन करते हैं, तो उनके अनुसार आप नास्तिक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त बौद्धों में महायान, कालचक्रयान आदि जैसे संप्रदाय भी हैं, जो बुद्ध को देवता सदृश पूजा करते हैं। बुद्ध को अलौकिक मानते हैं। बुद्ध की लोकोत्तर की संकल्पना भी उनमें हैं। महावीर के बारे में, भी लोग यही तर्क देते हैं और उन्हें नास्तिक स्वीकार नहीं करते।
सत्य नारायण गोयनका विश्व में विपश्यना के प्रचार और पुनर्स्थापना के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा, "विपश्यना नास्तिकों का मार्ग है, हम भी यही समझते थे भाई! बहुत डरते थे। अरे बुद्ध के मार्ग पर जायेंगे, तो नास्तिक हो जायेंगे। और नास्तिक होना कौन पसंद करता है? यह तो सबसे बड़ा गाली है कि तू तो नास्तिक है। 2500-2600 वर्ष पहले नास्तिक उसको कहते थे। ...जो निसर्ग के कर्म और कर्म-फल के सिद्धांत के अस्तित्व को स्वीकार करता है, वो आस्तिक है। जो अस्वीकार करता है, वो नास्तिक है।"
यह भी पढ़ें: नास्तिकता को प्रैक्टिस करने की 6 स्ट्रेटजी
अब बात करते बौद्ध मतावलंबी की। कई बौद्ध मतावलंबी भी नास्तिक कहलाना पसंद नहीं करते। वे भी प्रकृति के नियम, मन की शुद्धता आदि को धर्म कहते हैं। यदि आप धर्म में यकीन करते हैं, तो उनके अनुसार आप नास्तिक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त बौद्धों में महायान, कालचक्रयान आदि जैसे संप्रदाय भी हैं, जो बुद्ध को देवता सदृश पूजा करते हैं। बुद्ध को अलौकिक मानते हैं। बुद्ध की लोकोत्तर की संकल्पना भी उनमें हैं। महावीर के बारे में, भी लोग यही तर्क देते हैं और उन्हें नास्तिक स्वीकार नहीं करते।
सत्य नारायण गोयनका विश्व में विपश्यना के प्रचार और पुनर्स्थापना के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा, "विपश्यना नास्तिकों का मार्ग है, हम भी यही समझते थे भाई! बहुत डरते थे। अरे बुद्ध के मार्ग पर जायेंगे, तो नास्तिक हो जायेंगे। और नास्तिक होना कौन पसंद करता है? यह तो सबसे बड़ा गाली है कि तू तो नास्तिक है। 2500-2600 वर्ष पहले नास्तिक उसको कहते थे। ...जो निसर्ग के कर्म और कर्म-फल के सिद्धांत के अस्तित्व को स्वीकार करता है, वो आस्तिक है। जो अस्वीकार करता है, वो नास्तिक है।"
कुछ लोग भारत में, ऐसे भी हैं जो नास्तिक को गलत मानते हैं। यदि आप खुद को नास्तिक कहते हैं, तो वो आपको अनैतिक, मूल्यहीन, पापी आदि पता नहीं क्या क्या कह डालेंगे। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति से सो खुद को नास्तिक कहता है, उससे घृणा करते हैं। ऐसे में बुद्ध, महावीर आदि किसी को भी नास्तिक के रूप में स्वीकार नहीं करते। उनके हिसाब से नास्तिक होना, अपराध और पाप सदृश कृत्य है।
चार्वाक को भी नास्तिक कहा जाता है। उनके बारे में बहुत लोकप्रिय पंक्ति है, "यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं
कृत्वा घृतं पिबेत्।" अर्थात जब तक जीओ सुख से जीओ और अगर जरुरत पड़े तो
कर्ज लेकर भी घी पीओ। इसलिए उसे भौतिकवादी और अनैतिक भी लोग कहते हैं। पता नहीं
चार्वाक की असलियत क्या थी।
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि नास्तिक होना असंभव है। यदि आप कुछ में भी यकीन करते हैं, तो फिर आप नास्तिक नहीं हैं, बस ढोंग कर रहे हैं और हठ पाल रहे हैं। वे लोग नास्तिकता की सोच को स्वीकार करने के लिए कभी तैयार नहीं होते।
अब बात करें, पश्चिम की। एथिस्ट (Atheist) शब्द, थिस्ट (Theist) का विपरीत है। यह शब्द (Atheos) पांचवीं शदी ईसा पूर्व में यूनान में प्रयुक्त किया गया,
जिसका अर्थ था, बिना देव या देवों के। इस प्रकार, जो किसी देव अथवा ईश्वर में यकीन
नहीं करता वह एथिस्ट कहलाया।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि कोई तो शक्ति है जिससे पृथ्वी, दुनिया,
आकाश आदि चल रहा है। यदि ऐसा नहीं होता, तो सृष्टि कैसे चलती? वे यह भी कहते हैं
कि यदि कोई शक्ति नहीं है तो सृष्टि का निर्माण कैसे हुआ। यदि आप कहेंगे कि जिस
तरह से उनके ईश्वर को पैदा होने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं, वैसे ही प्रकृति,
सूरज, तारे, चाँद, पृथ्वी आदि के होने के लिए भी किसी की ज़रूरत नहीं है। बल्कि यह
सब प्रकृति के कारण है।
वे आपसे पूछेंगे कि आप गुरुत्वाकर्षण के नियम में विश्वास करते हो कि नहीं? पृथ्वी
घुमती है, सूर्य उदित होता है, नदी का जल सागर में जाता है, बारिश होती है आदि में
विश्वास करते हो या नहीं? अगर आपने कहा कि हाँ, तो वे कहेंगे कि फिर यही शक्ति
ईश्वर है। यानी आपको हाँ कहलवा के दम लेंगे।
कुछ लोग तो प्रेम, इंसानियत, भाईचारा आदि को ईश्वर कह देंगे और यदि आप कहेंगे, इसमें तो मैं भी यकीन करता हूँ, तो वो कहेंगे कि देखा आप नास्तिक नहीं हो।
आखिरी बात, जिस तरह से इन्सान को छोड़कर किसी भी प्राणी, पेड़-पौधों आदि के
स्तित्व के होने के लिए न ही किसी ईश्वर की जरुरत है, न किसी वेद की और न किसी
धर्म की। न किसी महापुरुष की आज्ञा की ज़रूरत है। उसी प्रकार इंसान को भी इंसान होने के लिए न किसी धर्म की ज़रूरत है, न
किसी ईश्वर की।
पेड़-पौधे, प्रकृति में पहाड़, नदी, जानवर, कीट-पतंगे आदि के लिए इन सब का कोई झमेला नहीं है। फिर भी एक पेड़ आम, तरबूज, पपीता आदि जैसा मीठा फल देता है कि नहीं। वहीं ऐसे पेड़ भी हैं, जो जहर भी पैदा करता है। जानवरों के बारे में भी हम ऐसा ही कह सकते हैं।
फिर इंसान को अच्छा बुरा होने के लिए धर्म की ज़रूरत आखिर क्यों हैं? क्या कोई
इंसान बिना हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, सिख, बौद्ध, जैन, यहूदी आदि ठप्पों को
अपने ऊपर न लगाये, तो क्या वह प्रेम नहीं कर सकता? किसी को गले नहीं लगा सकता, हाथ
नहीं मिला सकता? दोस्त और जीवन साथी नहीं हो सकता? क्या ये धार्मिक लेबल अपने ऊपर लगाना ज़रूरी है? क्या अपनी सोच को मानने के लिए वेद, कुरान आदि की इज़ाज़त लेनी पड़ेगी? क्या अच्छा इंसान होने के लिए, मानवता में यकीन करने के लिए ईश्वर, अल्लाह अथवा गॉड में, बिना जाने समझे यकीन करना होगा?
अब शायद आपको स्पस्ट हो गया होगा कि नास्तिक कौन है। आस्तिक अथवा नास्तिक होने
से उनका अच्छा-बुरा होने से कोई सम्बन्ध है भी या नहीं, यह भी समझ में आया होगा। नास्तिक या आस्तिक बुरे, अनैतिक, भ्रष्ट, अपराधी आदि हो सकते हैं या नहीं, आपको अपने आसपास
के लोगों को देखकर तथा अपने अनुभव से समझना है। कोई पूर्वाग्रह नहीं, पालना है।
बाकी आप अगर नास्तिक हैं अथवा आस्तिक हैं अथवा कन्फ्यूज्ड हैं, चाहे जो भी हैं। अपनी सोच समझ पर यकीन करें। इस ब्लॉग पर अपनी समझ बढ़ाते रहें। यदि आप अलग सोचते हैं, तो जब तब हमें भी अवगत करते रहे, जिससे हमारी समझ भी बेहतर हो।आप यकीन करें, नास्तिक लोग ज्ञान, अनुभब, जीवन, प्रकृति, इंसानियत और आपका सम्मान करते हैं।
– शेषनाथ वर्णवाल