नास्तिकों के
लेकर लोगों के मन में कितने ही सवाल हैं। तरह तरह के सवाल। मानों नास्तिक इंसान न
हुआ, कोई फितूर हो गया हो। कोरा पर एक साथी ‘भावना औलख’ ने पूछा कि एक नास्तिक किस पर विश्वासकरता है? यह ज़वाब उसी के लिए लिखा गया है।
एक नास्तिक
खुद पर, अपने साथियों पर और मानवता पर
विश्वास करता है। किसी पर विश्वास करने के लिए ज्ञान तथा अनुभव होना ज़रूरी होता है।
यदि किसी चीज का ज्ञान अथवा अनुभव नहीं होता, तो एक नास्तिक
वह तर्क अथवा अनुमान का सहारा ले सकता है। लेकिन अनुभव के बाद वह अनुमान को छोड़
देता है।
एक नास्तिक
प्रकृति, पेड़-पौधे, जीव, नदी आकाश, पहाड़, जीव-जन्तु आदि पर भी विश्वास करता है। प्रेम और जीवन, लोगों के साथ अच्छा व्यव्हार करने आदि में भी यकीन करता है।
दरअसल हमने एक
नास्तिक को एक अलग सा प्राणी मान लिया है,
जो किसी भी चीज पर यकीन नहीं करता है, अनैतिक
होता है, पापी होता है आदि आदि। हालाँकि यह सच नहीं है। क्या
आप बुद्ध, भगत सिंह और स्टीफन हाकिंग को जानते हैं? जानते हैं, न! वे भी नास्तिक
रहे हैं। अब आप निर्णय लीजिये कि वे नैतिक हैं आपकी नज़र में या अनैतिक। उनको आप
मानवीय मूल्यों से युक्त समझते हैं, या मानवीय मूल्यों से रहित।
नास्तिक बस
अपने तर्क और जिज्ञासा को महत्व देने के कारण ईश्वर, पूजा-पाठ, धर्म आदि में यकीन नहीं
करता। वह इसलिए कि इससे उसे न ही कोई औचित्य समझ में आता है और न की कोई लाभ।
उल्टे धर्म और ईश्वर के नाम पर तरह तरह के विवाद होते रहते हैं।
मंदिर-मस्जिद, भारत-पाकिस्तान, आतंकवाद,
साम्प्रदायिकता, दंगे, तरह
तरह से भेदभाव आदि भी धर्मों से बढ़ावा मिलता है। या कहें कि धर्म नामक औजार का
इस्तेमाल इसी लिए किया जाता है। मुख्या उद्देश्य होता है सत्ता पर काबिज होना तथा
सामंतवादी समाज को निर्माण नहीं होने देना। जबकि एक बड़ी संख्या में लोग अंधश्रद्धा
के शिकार होकर मुकदर्शक और विक्टिम बन जाते हैं।
लोगों को यह
जानना ज़रूरी है कि नास्तिक मनुष्य भी नेक दिल और बदमाश हो सकता है। लेकिन एक चीज
एक नास्तिक होने की शर्त है, “वह तर्कशील और जिज्ञासु होता है” अंधभक्त नहीं होता।
(तस्वीर The Lily से साभार)