क्या मनुष्य का मस्तिष्क भी पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को समझता है?



आपने पढ़ा ही होगा कि कुछ जीव-जंतु पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग नेविगेशन के रूप में करते है। अर्थात ये जीव-जंतु पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग कर दिशा का पता लगा लेते हैं। प्रवासी पंक्षी, समुद्री कछुए और कुछ प्रकार के बैक्टीरिया इसके सटीक उदाहरण हैं। अब सवाल है कि क्या मनुष्य का मस्तिष्क भी पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को समझता है?

एक नये शोध के अनुसार मनुष्य का दिमाग भी पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को भली-भांति समझता है। साइंस जर्नल eNeuro में प्रकाशित एक नया अध्ययन बताता है कि मस्तिष्क स्कैन के द्वारा इस तथ्य का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है। मानव मस्तिष्क के चारों ओर फैले चुंबकीय क्षेत्र के कारण मस्तिष्क संकेतों में बदलाव आता है।

चुम्बकीय क्षेत्र का पता लगाने की क्षमता मानव मस्तिष्क में भी मौजूद होती है। पहली बार वैज्ञानिकों ने 1980 के दशक में यह सुझाव दिया था कि मानव मस्तिष्क भी पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को समझता है। लेकिन वैज्ञानिकों को मस्तिष्क के अध्ययनों में इस क्षमता का प्रमाण नहीं मिला।  

इस शोध में शोधकर्ताओं ने 34 वयस्कों को बड़े और चौकोर विधुत कॉइल से सजी एक अंधेरे परीक्षण कक्ष में बैठने के लिए कहा। इन कॉइल में विद्युत धाराएं प्रवाहित की गयी जिसके कारण कक्ष में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो गया। इस चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता लगभग उतनी ही थी जितनी पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आपके मस्तिष्क पर लगता है।

शोध अध्ययन के लेखक कोनी वांग (Connie Wang) के अनुसार, तुलनात्मक रूप से यह चुम्बकीय क्षेत्र एक एमआरआई (MRI) मशीनों द्वारा बनाई गई चुम्बकीय क्षेत्र की तुलना में लगभग 100,000 गुना कमजोर होता है।

शोध प्रतिभागियों को अपनी आंखों को बंद कर आराम करने के लिए कहा गया जबकि शोधकर्ताओं ने उनके चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव लाना शुरू कर दिया। इस प्रयोग के दौरान लगातार इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (Electroencephalogram: EEG) मशीनों से मस्तिष्क के संकेतों को मापा गया, जिसे विज्ञान की भाषा मे अल्फा तरंग (Alpha Waves) कहा जाता है।

इन अल्फा तरंगों के आयाम में यदि कमी आती है, तो इसका मतलब होता है मस्तिष्क में एक संकेत उठा है, चाहे वह संकेत दृष्टि, ध्वनि या चुंबकीय क्षेत्र से ही क्यों न उत्पन्न हो। 34 प्रतिभागियों में से चार व्यक्तियों के मस्तिष्क के स्कैन ने चुंबकीय क्षेत्र में एक बदलाव (उत्तर पूर्व से उत्तर पश्चिम) के लिए जबरदस्त प्रतिक्रिया दिखाया।

यह बदलाव संकेत ठीक वैसा ही था जैसा एक व्यक्ति अपने सिर को बाएं से दाएं जल्दी से स्थानांतरित करता है, तब उत्पन्न होता है। इन चार व्यक्तियों के अल्फा मस्तिष्क तरंगों के आयाम में 60 प्रतिशत की कमी आई। उन्होंने तभी जवाब दिया कि दिशा क्षेत्र उत्तर-पूर्व से उत्तर-पश्चिम में स्थानांतरित हो गया जबकि दूसरी दिशा में स्थानांतरित होने का आभास उन्हें नही हुआ। जबकि कई प्रतिभागियों को सर चकराने जैसा आभास होता रहा जबकि कुछ लोग के मस्तिष्क में संकेत तो उत्पन्न हो रहा था, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नही व्यक्त की।

शोधकर्ताओं का मानना है कि कुछ व्यक्तियों के लिए कुछ संकेत पर प्रतिक्रिया देना अनूठा हो सकता है जैसे कि कुछ लोग दाएं हाथ और कुछ बाएं हाथ वाले कैसे होते हैं।

शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्ष में कहा कि शोध को एक तरफ रखकर देखें। असल में अधिकांश लोग अध्ययन के खिलाफ चुंबकीय क्षेत्र को समझ नहीं सकते है क्योंकि मस्तिष्क संकेत क्षमता को अलग-अलग दिमागों में अलग तरह से व्यक्त किया जाता है। कुछ लोग शांत, कुछ लोग तेज प्रतिक्रिया, कुछ लोग वास्तव में कला में अच्छे हैं और कुछ लोग गणित में वास्तव में अच्छे है।

अबतक यह स्पष्ट नहीं है कि केवल कुछ मनुष्य चुंबकत्व को समझने के लिए सक्षम क्यों प्रतीत होते है। हालांकि कई जानवर नेविगेशन के लिए पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करते हैं। एक प्रकार का बैक्टीरिया जिसे मैग्नेटोटैक्टिक  बैक्टीरिया (Magnetotactic Bacteria) कहा जाता है। ये सूक्ष्म जीवाणु मैग्नेटाइट (Fe3O4) नामक चुंबकीय कणों का उपयोग करके हमारे ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र लाइनों के साथ चले जाते हैं।

इन मैग्नेटाइट कणों को दशकों से मानव मस्तिष्क में मौजूद माना जाता है और पहली बार कैलटेक में भूविज्ञान के प्रोफेसर जोसेफ किर्शविच (Joseph Kirschvink) ने ऐसा पाया था। साइंटिफिक रिपोर्ट्स (Scientific Reports) में अगस्त 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया था कि ये चुंबकीय कण पूरे मानव मस्तिष्क में बिखरे हुए हैं। मस्तिष्क में उनकी व्यापक उपस्थिति ने सुझाव दिया की चुम्बकीय कणों का होना वास्तव में चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति मस्तिष्क संवेदनशीलता का प्रमाण देता है।
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