'बाबा' लोग पर्यावरण, किसान, अशिक्षा और बेरोज़गारी पर बात क्यों नहीं करते?



एक चीज पर गौर किया आपने? ये जितने भी दाढ़ी वाले बाबा सिद्ध-पुरुष, रजिस्टर्ड भगवान या योगी हैं जो ध्यान समाधी और मोक्ष की बकवास में सबको घसीटे रहते हैं, वे कभी समाज के असली मुद्दों की बात नहीं करते। न महिलाओं की बदहाली न किसानों का मरण न बच्चों की अशिक्षा या बेरोजगारी और न ही धर्म, जाति, वर्ण और लिंग के विभाजन या शोषण। उनके धंधे में ये मुद्दा शामिल ही नहीं। 

अभी एक रजिस्टर्ड भगवान की संबोधि तिथि गुजरी। उसके बाद उनके स्वघोषित विश्वगुरुओं की बाढ़ सी आ गयी है। वे सब के सब उसी धंधे के उस्ताद हैं। वे आसमानी बातें इतनी करते हैं कि लोगों को लगता ही नहीं कि अभी जमीन पर भी जिन्दगी बाकी है। 

एक गहरा राज है इसके पीछे। अगर समाज सच में ही शोषण मुक्त हो जाए तो ध्यान समाधि और बाबाजी के आश्रम सहित उनके प्रवचन इत्यादि पर कोई ध्यान नहीं देगा। शोषण और सामाजिक असमानता के कारण जो पीड़ा समाज में बनी रहती है वो ही लोगों को खासकर स्त्रीयों को धार्मिक बनाती है। 

विभाजित और आपस में लड़ने वाला समाज भारी असुरक्षा में जीता है, फिर पोंगा पण्डित योगी सद्गुरु और बाबाजी उन्हें आर्ट ऑफ़ लिविंग, मन की शांति, वास्तु, तंत्र मन्त्र ज्योतिष और ध्यान समाधि सिखाते हैं।

ये बाबा योगी और आजकल के रजिस्टर्ड सद्गुरु और भगवान टाइप के लोग सच में बहुत ही चालाक होते हैं। इन्हें पता है क्लाइंट क्यों और कैसे आते हैं, अगर समाज में लड़ाई वैमनस्य और भेदभाव न हो, तो लोग न गरीब होंगे, न गुलाम होंगे, न अंधविश्वासी होंगे। जिंदगी वैसे ही खुशहाल हो जायेगी उसके लिए किसी दिव्य हस्तक्षेप की जरूरत न रह जायेगी। तब बाबाजी और उनके धर्म क्या करेंगे, ये धंधे का सवाल है। अध्यात्म और समाधि का प्रशिक्षण उनका धंधा है। मन की शान्ति उनका प्रोडक्ट है जो अशांत विभाजित और गरीब समाज में ही बिक सकता है।

इसलिए ये सारे पाखण्डी किन्ही दूसरी बातों में भले ही आपस में लड़ते हों, पर्दे के पीछे इनमे एक गुप्त समझौता बना ही रहता है। समाज से गरीबी, जहालत, अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव और शोषण खत्म नहीं होना चाहिए। 

विश्वशांति के लिए अरबों खरबों की संगीत सभा करवा देंगे लेकिन मरते किसानों और शिक्षा के लिए लड़ रहे विश्वविद्यालयों के बारे में मुंह नहीं खोलेंगे। अपनी सैकड़ों लक्जरी रोल्स रॉयस पर करोड़ों खर्च करवा देंगे लेकिन आत्मा परमात्मा और परलोक की गुलामी में फंसे लोगों को आजाद करने के लिए एक ढंग की किताब बाहर नहीं आने देंगे।

इस देश का अध्यात्म असल में सामाजिक क्रान्ति को रोकने के लिए रचा गया सबसे खतरनाक और कारगर हथियार है। इससे जितना बचकर रहेंगे उतना अच्छा होगा।

   – संजय श्रमण

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