![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGSyV_ljXhtyEs9G2h_LmRi7cTVy1WpbU53VtW6Cd5wotKLdIyjP5fj6dycCBUElWOT-d0_Tdw9VYZdd2yubJ5zQyx6JolJuQxXHhNLbz3A-4a06vf77RXJFRdFMdKpU9Gtim79DLq7sU/s640/4+dangerous+books+of+a+nastik.jpg)
मेरी नज़र
में ऐसी चार किताबें हैं जिनसे सामान्य जीवन जीने की लालसा करने वाले युवाओं को
दूर रहना चाहिए। दूर इसलिए रहना चाहिए कि इन किताबों को पढने के बाद आप नास्तिक,
व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़े करने वाले अथवा नई नैतिकता की बात करने वाले व्यक्ति
होने का खतरा पालेंगे। ऐसी चार किताबें मेरी नज़र में निम्न हैं।
पहली किताब
है,
भगत सिंह द्वारा लिखित “मैं नास्तिक क्यों
हूँ?” यह इसलिए खतरनाक किताब है कि इसको पढने के बाद
आपके सोचने समझने का तरीका बदल जायेगा। आप शायद हर चीज को तर्क और मानवता के लिए
उपयोगिता के आधार पर देखने लगेंगे। आप धर्म और ईश्वर के नाम पर जारी सभी आडम्बर,
भेदभाव, शोषण, अंधश्रद्धा
अदि को जानने समझने की दृष्टि विकसित कर सकते हैं। साथ ही इन व्यवस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू कर देंगे।
यदि एक कदम और आगे बढे, और इसका पालन करना शुरू कर दिए तो आप नास्तिक कहे जायेंगे। सामाजिक व्यवस्था में मान्य कुरीतियों जैसे कि जातिभेद, धार्मिक भेदभाव, पितृसत्ता, सरकारी दमन व भ्रष्टाचार आदि को सवालिया निगाहों से देखने लग सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को समाज में एडजस्ट करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए यह किताब खतरनाक है।
दूसरी
किताब है,
“कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो”। यह पुस्तक
सामाजिक भेदभाव, शोषण और सत्ता को एक अलग नज़रिए से देखता है।
बुर्जुवा और सर्वहारा के बीच संसाधनों के भेदभावपूर्ण बंटवारा को समाज से दूर करने
की बात करता है। यह पुस्तक कार्ल मार्क्स व एंजेल्स द्वारा रचित है। सामाजिक
भेदभाव की जड़ में उत्पादन के साधनों पर निर्भरता की बात करता है।
समाज में
आर्थिक व सामाजिक रूप से भेदभाव को दूर करने के लिए राज्य के संसाधनों व उत्पादन
के साधनों पर राज्य के स्वामित्व की बात करता है। इसे पढ़ने के बाद आप राज्य,
सरकार, सत्ता, आर्थिक
भेदभाव्, सत्ता पर चंद लोगों के स्वामित्व पर सवाल उठाने की तरफ आगे बढ़ सकते हैं।
इस लिहाज से मेरी नज़र में, यह ख़िताब दूसरी खतरनाक किताब है।
तीसरी
किताब है,
“एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट”। आंबेडकर द्वारा
रचित यह किताब भारत में जाति आधारित भेदभाव्, शोषण और सदियों
तक चंद समुदायों द्वारा साजिसपूर्ण व्यवस्था बनाकर बहुसंख्य को शोषित करने की बात
का वर्णन करता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के अलावा अछूत जैसे भेदभाव वाली व्यवस्था के पीछे के
अमानवीय अत्याचार को बेनकाब करती है। यह पुस्तक न केवल वर्णों और जातियों की
उत्पति व शोषण पर बात करती है, बल्कि जाति उन्मूलन करने के
उपाय भी बताती है।
भारत जैसे देश में व्याप्त जाति व्यवस्था को समझने, इस आधार पर भेदभाव दूर करने, धार्मिक मान्यता
प्राप्त षड्यंत्र को समझने आदि की लिहाज से यह किताब क्रन्तिकारी है। यदि आप जाति
व्यवस्था में शीर्ष पर हैं, तो यह पुस्तक आपको सोचने को
मजबूर करेगी। हो सकता है, आपको आसानी से पचे भी नहीं। संभव
है, आप जाति को लेकर थोड़े कुंठित भी हो जायें अथवा इसके उन्मूलन
की दिशा में कार्य करें। लेकिन यदि आप जाति व्यवस्था में निचले पायदान पर हैं,
तो आपको यह पुस्तक उद्वेलित करेगी। आक्रोशित करेगी और सामाजिक
परिस्थिति को बदने को प्रेरित करेगी।
चौथी किताब
है,
“जर्थ्रुस्थ ने कहा था”। नीत्शे द्वारा
लिखी यह किताब क्लासिक है। नैतिकता, सत्ता, समाज, पाप-पुण्य, समाज की
सच्चाई, मानवीय कमजोरी आदि पर बात करती यह किताब आपको कई तरह
से समाज की सच्चाई से रूबरू कराती है। आपके सोचने के दृष्टिकोण और दायरा दोनों का
इजाफा करती है। यह किताब इसलिए खतरनाक है कि सामाजिक नैतिकता, पाप-पूण्य, ईश्वर आदि की मान्यताओं पर आप सवाल खड़े
कर सकते हैं। आप विद्रोही की श्रेणी में जाने का खतरा भी पाल सकते हैं।
–
शेषनाथ वर्णवाल
आपको
यह लेख कैसा लगा कमेन्ट कर के बताएँगे, तो अच्छा लगेगा। यदि आप भी नास्तिकता,
तर्कशील सोच, सामाजिक कुरीतियों, वैज्ञानिक चिंतन आदि पर कोई लेख हमारे लिए लिखना चाहते हों, तो लिखिए
और लिख भेजिए हमारे ई-मेल nastik@outlook.in पर। हमें आपके लेख का बेसब्री से इंतज़ार
रहेगा।