वैज्ञानिक तथ्य: हवन में एक चम्मच घी से कितना ऑक्सीज़न पैदा होता है?



आजकल देश के धार्मिक जगत में विज्ञान की धूम मची हुई है।  हर कोई प्राचीन धर्मशास्त्रों की पुरानी बातों में नया विज्ञान ढूंढ रहा है, और असल विज्ञान न मिले तो न सही, नक़ल को ही असल समझा कर बेचा जा रहा है। क्या ज्योतिष, क्या वास्तुशास्त्र और क्या ध्यान-योगासन, सभी वैज्ञानिकता का बाना पहन कर नए-नए मैकअप कर मैदान में उतर रहे है। जिन बाबाओं और पीरों ने छठी कक्षा तक भी विज्ञान नहीं पढ़ा है, वे भी खुद को साईंटिस्ट बनाकर खूब जेब काट रहे है। 

वायु प्रदुषण के इस भीषण संकट में एक और दावा सुर्ख़ियों में है, हवन की वैज्ञानिकता का। हज़ारों साल पहले निकले इस वैदिक कर्मकांड को बारिश करवाने से लेकर वायु प्रदुषण दूर करने और जरुरत पड़ने पर एड्स, कैंसर और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों तक को दूर करने वाला साबित किया जा रहा है। 

हवन की वैज्ञानिकता की बात निकली तो हमारे अंधभक्त भाई-बहन न आगे देख रहे हैं, न पीछे। एक खबर के अनुसार, बीते साल मेरठ में 500 क्विंटल लकड़ियों को हवन में जलाकर एक संगठन ने जबरदस्त वाहवाही लूटी, आखिर पर्यावरण संतुलन का अचूक उपाय जो कर रहे थे। 

आप लोगों को भी अक्सर व्हाट्सप्प पर ऐसे मैसज देखने को मिल रहे होंगे, जिसमें रूस के एक वैज्ञानिक शिरोविच ने दावा किया कि हवन में लकड़ी पर एक चम्मच घी डालने से एक टन ऑक्सीज़न पैदा होती है।  कहीं जापान के वैज्ञानिक का दावा पेश किया जा रहा कि गाय के कंडे पर घी डालने से 2-3 किलोमीटर के हवा में से सारे बैक्टीरिया मर गए। 

अब मज़ा यह है कि इन दावों के बारे में न तो रूस को कोई खबर है, न जापान को। विदेशों की भक्ति हमारे खून में से गई नहीं है। इसी का असर है कि जैसे ही दो-तीन विदेशी नाम देखने को मिल जाये, सारे सन्दर्भ को एक वैज्ञानिक प्रमाणपत्र अपने आप ही मिल जाता है और हम भी गर्व से सीना फुलाकर खुद से कहते है, देखा, हम तो पहले ही से जगतगुरु है।” 

लेकिन हम तर्कशील और विज्ञानवादी लोग इन सब दावों पर आँख मूँद नहीं सकते। इसलिए आइये इस लेख के माध्यम से जानें कि हवन-और यज्ञ के बारे में किये जा रहे इन दावों में कितनी सच्चाई है

हवन की वैज्ञानिकता के इन दावों में प्रमुख बातें है –

1. हवन से वायु प्रदुषण दूर होना 
2. हवन से बीमारियाँ ठीक होना 
3. हवन से पर्यावरण संतुलन होना 

लिए एक एक करके सभी बातों पर आते है।

दोस्तों! एक सन्देश में कहा गया कि हवन में आम की लकड़ी प्रयुक्त होती है, जो जलने पर ऑक्सीजन देती है, अब कोई 5वीं पास बच्चा भी यह बता सकता है कि किसी भी चीज़ के दहन में ऑक्सीज़न जलती है, कभी पैदा नहीं होती।  हवन में सबसे पहले लकड़ियों को जलाया जाता है, लेकिन उसके भी पहले उन लकड़ियों को जलाने के जिस माचिस का प्रयोग हम करते है उसपर लगे बारूद के बारे में थोड़ा जानिए ! 

छोटी सी तीली और बड़ा प्रदूषण

यह बारूद, माचिस की डिब्बियों की कीमत कम रखने के लिए एकदम निम्न दर्जे का मसाला वाला होता है। इस बारूद में फॉस्फोरस (phosphorus sesquisulfide) प्रयोग किया जाता है, जो रगड़ने पर आग पकड़ता है। लेकिन इसके जलते ही जो गैस निकलती है, वह हमारे स्वास्थ के लिए भयंकर हानिकारक होती है। इसके कुछ प्रमुख नुकसानों में है: आतों का इंफेक्शन, पेट में मरोड़, श्वसन तंत्र के विकार और जलन। अधिक जानकारी के  लिए भारत सरकार द्वारा बनाई गई इस वेबसाइट के लिंक को देख लें।

अब बात करते हैं, हवन में प्रयोग की जाने वाली दूसरी सामग्री ‘कपूर’ की। 

नक़ल की इस दुनियाँ में कपूर भी असली और प्राकृतिक कपूर नहीं रहा।  जब माँग बढ़ी तो कंपनिया भी सस्ते और जल्दी कपूर बनाने के चक्कर में रासायनिक कपूर धड़ल्ले से बेच रही हैं। कृत्रिम कपूर तारपीन के तेल को बहुत सी केमिकल प्रक्रियाएं करने के बाद प्राप्त होता है। इसका रासायनिक फार्मूला C10H16O है। यह पानी में अघुलनशील और अल्कोहल में घुलनशील  होता है।

यह कपूर बहुत से कारखानों में प्रयोग किया जाता है, यह पालीविनायल क्लोराइड, सेलूलोस नाइट्रेट, पेंट, धुवां-रहित बारूद और कुछ खास प्रकार के प्लास्टिक, आदि के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है।

बच्चों के लिए कपूर जहर की तरह होता है। नकली कपूर के नुकसानों में त्वचा संक्रमण, श्वांस की बीमारी, तंत्रिका तंत्र और किडनी की  बीमारी और पेट संबधित रोग प्रमुख है। इस विषय पर अमर-उजाला नामक दैनिक अख़बार 27 जुलाई 2016 को एक लेख भी छपा था जो आज भी  इंटरनेटपर उपलब्ध है। इसी के चलते 1980 में ही अमेरिका ने स्थानीय बाजार में कपूर के तेल को प्रतिबंधित ही कर दिया था।

अब बात आती है हवन में प्रयोग होने वाली लकड़ी की।

यहाँ भी थोड़ी सी खोज के बाद एक बात साफ हो जाती है कि जब लकड़ी को जलाया जाता है तो भारी मात्रा में कार्बन डॉयऑक्साइड (CO2) निकलती है। इसके अलावा अन्य कई विषैली गैसें जिसमें सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, मीथेन आदि भी निकलती हैं।

ये गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में ग्रीनहाउस गैस के रूप में 300 गुना अधिक शक्तिशाली है  और CO2 से 21 गुना ज्यादा खतरनाक है, साथ ही यह वायुमंडल में 120 साल तक रहती है। इनका ग्लोबल वार्मिग बढ़ाने में  भी अप्रत्यक्ष हाथ माना गया है। सन्दर्भ: एक (लिंक), दो (लिंक) एवं तीन (लिंक)। अब आईये देखते है कि लकड़ी के जलने पर जो धुआँ होता है उसमें क्या छुपा है?

सेहत के लिए  अत्यंत हानिकारक 

धुआं गैसों और ठीक कणों के एक जटिल मिश्रण से बना होता है। जब लकड़ी और अन्य कार्बनिक पदार्थ जलते हैं, जिसमें 100 से अधिक खतरनाक रसायन होते हैं जो विषाक्त और कैंसरकारी (कैंसर पैदा करने वाले) होते हैं। जब सांस ली जाती है, तो ये महीन कण हमारे फेफड़ों में जा सकते हैं।

कुछ के लिए, यह धुँआ हृदय संबंधी समस्याओं जैसे कि एनजाइना और श्वसन संबंधी समस्याओं जैसे अस्थमा, वातस्फीति और ब्रोंकाइटिस को भी बढ़ा सकता है।

स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण को भी नुकसान

लकड़ी का जलना, हवा में पार्टिकुलेट मैटर (PM-10) में 20% तक योगदान कर सकते हैं। हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड का 15% योगदान देता है। कार्बन मोनोऑक्साइड रक्त हीमोग्लोबिन के साथ बंध सकता है और ऑक्सीजन को शरीर में पहुंचने से रोक सकता है। एक गैर-प्रमाणित विधि से लकड़ी का चार घंटे तक दहन करने से उतनी कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जितना की एक कार को 20 मील चलाने से। 

अन्य खतरनाक रसायन

वैज्ञानिकों ने पाया है कि लकड़ी जलने से 100 से अधिक खतरनाक रसायन निकलते हैं जो विषाक्त और कैंसरकारी हो सकते हैं। इंडियन अकैडमी ऑफ़ साइंस के अनुसार, इनमें Carbon Monoxide (CO) ,Carbon Dioxide (CO2) ,Nitrogen Oxides (NO & NO2) ,Sulfur Dioxide (SO2) शामिल हैं।

यज्ञ पर कई वैज्ञानिक दावों की गहराई में जाकर छानबीन करने से पता लगता है कि जो लोग भी इस प्रकार के दावे कर रहे हैं, वे भी धीमी आवाज़ में यही कहते हैं कि यज्ञ के फायदे बहुत सी अन्य बातों पर निर्भर है जैसे कि सही लकड़ी, उसकी मोटाई, जलाने वाले हवन कुंड का आयतन, घी की शुद्धता, हवन सामग्री की गुणवत्ता, जलवायु और हवन करने की सही विधि आदि आदि।

अब आप खुद ही सोचिए धार्मिक कर्मकांड को इस प्रकार वैज्ञानिक रूप से हर बार संपन्न करना किस हद तक संभव है? दूसरी बड़ी बात आज जहाँ घर में आने वाले दूध तक में मिलावट हो रही है तो घी, लकड़ी, हवन सामग्री की गुणवत्ता और शुद्धत्ता की गारंटी कौन देगा

यज्ञ को चिकित्सा के रूप में साबित करने वाली एक वेबसाइट का दावा है कि यज्ञ का हवा के ऋण आयनों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस दावे में कहा गया है कि नकारात्मक चार्ज किए गए आयनों का शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वे सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाकर हमारे मनोदशा को बढ़ाते हैं, वे रक्तचाप को स्थिर करने में मदद करते हैं, शरीर की क्षारीयता को बढ़ाते हैं,  हड्डियों को मजबूत करते हैं, प्रतिरक्षा को बढ़ाते हैं, शारीरिक फुर्ति में तेजी लाते हैं और हवा को शुद्ध और साफ करते हैं।

अब देखते है कि हकीकत क्या है।

US National Library of Medicine National Institutes of Health Search Database पर इस बारे में तैंतीस अध्ययनों (1957-2012) में अवसाद, चिंता, मनोदशा की स्थिति और मनुष्यों में मानसिक कल्याण की व्यक्तिपरक भावनाओं पर वायु आयनीकरण के प्रभावों का मूल्यांकन किया गया जिसमें चिंता, मनोदशा, विश्राम, नींद और व्यक्तिगत आराम उपायों पर सकारात्मक या नकारात्मक वायु आयनीकरण का कोई सुसंगत प्रभाव नहीं देखा गया। अतः ये बात भी मात्र एक छलावा साबित हुई।

एक दावा अक्सर और भी किया जाता है जिसमें गंभीर बीमारियों पर यज्ञ के द्वारा इलाज की बात की जाती है। लेकिन दुःख की बात यह है कि जो संस्थाएं यज्ञ-चिकित्साके नाम पर करोड़ों रूपये खर्च कर देती हैं, वे कुछ लाख रूपये लगाकर इस बारे में न तो कोई निष्पक्ष और सही शोध करती हैं और न ही अपने दावों को किसी साइंस जर्नल में प्रकाशित करती है।

बहुत खोजने पर हमें एक मिर्गी रोग संबधित रिसर्च लिंक मिला जहाँ घटकों के औषधीय गुणों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हवन करने की दिनचर्या शरीर में एंटी-एपिलेप्टिक तत्वों का दहलीज मूल्य रख सकती है और मिर्गी को रोकने में मदद करता है। लेकिन वहाँ भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस परिकल्पना को साबित करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।

एक वेबसाइट पर दावा किया गया है कि फ्रांस के ट्रेलो नामक वैज्ञानिक ने साबित कर दिया है कि हवन में जले हुए गुड़ से फॉर्मिक एल्डिहाइड गैस भी निकलती है। एक वैज्ञानिक TAUTLIK ने पाया कि अगर हम ऐसी जगह पर रहते हैं जहाँ पर हवन किया जा रहा हो तो एक घंटे तक टाइफाइड बुखार के कीटाणु मारे जाते हैं।

इसके बारे में सच्चाई बताती है फेमिनिस्ट सांइस ब्लॉग की लेखिका और विज्ञान की शोधार्थी, जिसमें ये साफ किया गया है कि ये सारी बातें आधारहीन भ्रम के अलावा और कुछ नहीं है। फॉर्मिक एल्डिहाइड गैस कीटाणुनाशक जरूर है जिसका इस्तेमाल कीटनाशकों में किया जाता है पर साथ ही यह अत्यंत जहरीला और कैंसरकारक भी है।

अब इस वातावरण में मनुष्य  का रहना कितना लाभप्रद होगा आप खुद ही सोचें और निर्णय लें।

एक दावा और किया जाता है कि हाल के शोध प्रयोगों में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में घर के अंदर किए गए सर्वेक्षणों में यह देखा गया कि पार्टिकुलेट मेटर (PH) यज्ञ के दिन थोड़ा बढ़ा, लेकिन अंतत: दूसरे दिन और उसके अगले दिन 74% कम हो गया। अब आप स्वयं सोचिये की पहले दिन PH मान कितना बढ़ गया इसका कोई उल्लेख नहीं है। यहां तक ​​कि यह 2 दिनों के बाद सिर्फ 70% तक गिरा है अर्थात PH मान में 30% वृद्धि अभी भी विद्यमान थी?

मित्रों! इन सब बातों का निष्कर्ष यही निकलता है कि विज्ञान के नाम पर जनता को मूर्ख बनाने वाले दावों से हमें बचना चाहिए और किसी भी बात को सिर्फ इस लिए नहीं मानना चाहिए कि वो हमारे पूर्वजों ने लाखों साल पहले की थी। 

आशा करते हैं, यह लेख आपको तार्किक रूप से सोचने में मदद करेगा। फिर भी हम उत्साहित हैं क्योंकि कुछ विद्वानों ने निःस्वार्थ भाव से मानवता और प्रकृति की भलाई के लिए किये जाने वाले प्रत्येक कार्य को भी यज्ञकी संज्ञा दी है, और इस बात से हमें कोई आपत्ति नहीं है; बर्शर्ते वह कार्य निःस्वार्थ हो, न कि छिपे हुए स्वार्थ के रूप में।  इस रूप में यज्ञ के अंतर्गत निम्न कार्य किये जा सकते है। 

1. अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाएं। पर्यावरण संतुलन के लिए इससे अधिक अच्छा यज्ञ कोई नहीं हो सकता है। 
2. शाकाहार अपनाएं। 
3. पेट्रोल डीज़ल के स्थान पर वैकल्पिक इंधनों की खोज पर समय लगाएं। 
4. फैशन की दौड़ से बचें और प्राकृतिक जीवन की और मुडें। 
5. रिसाइकल, रीयूज और रीड्यूस के सिद्धांत को अपनाते रहें। 

  – प्रोफेसर (डॉ.) ऋषि आचार्य

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