नास्तिकों से हर धर्म और सम्प्रदाय
के लोगों को खतरा रहता है। वे नहीं चाहते कि कोई पीढ़ी सोचने समझने वाली और तर्क
करने वाली पैदा हो। इसके कई कारण हैं। पहला तो सोचने समझने वाले व्यक्ति को
कंट्रोल करना असान नहीं होता, वह देर सबेर
अपनी दृष्टि दुनिया और समाज के प्रति विकसित कर ही लेता है। उसे गुलाम बनाना आसान
नहीं होता।
वह गलत और संशय प्रतीत होने पर आपसे सवाल पूछ सकता है। आपके विचार से
अलग एक विकल्प सुझा सकता है। आप विचार और कार्यों कि आलोचना कर सकता है। आप नहीं
सुधरे तो आपका विरोध भी कर सकता है. तो तर्क और सोचने-समझने के बड़े खतरे हैं,
उनके लिए, जो चाहते हैं सत्ता उन्हीं के पास
रहे। धन और दबंगई उनके पास ही रहे।
सोचने-समझने और तर्क की परिणति इतने
तक ही पहुंचती तब तो ठीक था, पर तर्क करने
वाला और सोचने वाला व्यक्ति सरकार के कार्यों की समीक्षा कर सकता है। उसके
नाकारापन को जनता के सामने ला सकता है। आदिवासी इलाकों में पूंजीपति-दलालों के हाथ
बेचे जा रहे प्राकृतिक संसाधनों की पोल खोल सकता है। पण्डे, मौलवियों
के ईश्वर, अंधविश्वास और ढ़ोंग पर भी आपको आईना दिखा सकता है।
इसलिए बहुत से खतरे हैं, सोचने-समझने और तर्क करने के। इसी
लिए न सरकार चाहती है कि लोग अपनी सोच को वैज्ञानिक और तर्क से पुष्ट करें और न
धर्म के ठेकेदार। यही कारण है कि बहुसंख्य जनता उन्हें अपना माई-बाप मानती रहती है
और ढ़ोंग, आडम्बर, लूट, उत्पीड़न, भक्ति, मूढ़ता,
भ्रस्टाचार आदि जारी रहता है और हम भारत-पाकिस्तान, गाय-सूअर, सचिन-धोनी और सास-बहु में उलझे रहते हैं।
― शेषनाथ वर्णवाल
IMAGE COURTESY: E-INTERNATIONAL
RELATIONS
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