महेंद्र कुमार अपने फेसबुक
प्रोफाइल में लिखते हैं, "रिलेशनशिप मुक्त, संतान
मुक्त, धर्म मुक्त, नास्तिक, स्पष्टवादी, शाकाहारी, बहुआयामी,
पागल, देशी।" उनके
फेसबुक पोस्ट भी रेडिकल और सामान्य से काफी अलग। ऐसे व्यक्ति की आत्मकथ्य पढ़ने में
कुछ अलग तो लग सकता है, जो हमारे सामाजिक नियम कानून व संस्कार से अलग हों, पर कई
बातें हमें सोचने को मजबूर करती हैं। जीवन के प्रति उनकी दृष्टि बेशक नया और खोजी
की दृष्टि है। आईये पढ़ते हैं, उनकी कहानी उन्ही की जबानी और शुरू करते हैं, उनके
सामान्य परिचय से।
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संपादक
महेंद्र कुमार की तस्वीर उनके फेसबुक प्रोफाइल से |
नाम- महेंद्र कुमार, पता जोधपुर, राजस्थान, उम्र- 22 वर्ष, शिक्षा- स्नातक, धर्म- नास्तिक/ मानवतावादी, शौक- लेखन, संगीत सुनना, नये लोगों से मिलना। प्रेरणादायक शख्सियत- संजय दत्त, ओशो, निक वुजिकिक तथा पंसदीदा बालीवुड फिल्म- मदर इंडिया।
नास्तिकता की शुरुआत
जब मैं छठी कक्षा में पढता था, तब वहाँ के हेडमास्टर श्रीमान् रूगाराम जी थे, वह बहुत तार्किक थे। कक्षा में कभी - कभी ईश्वर, धर्म अंधविश्वासों तथा ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा होती थी। रूगाराम जी ने ईश्वर
के अस्तित्व को लेकर अपने निजी मत रखे थे, फलस्वरूप मैं ईश्वर के अस्तित्व तथा धर्मों की उत्पत्ति को
लेकर चिंतन करने लगा। उस समय मेरी जिज्ञासा चरम पर थी,
मानव की उत्पत्ति, पृथ्वी पर जीवों का उदभव, ब्रहांड के रहस्यों इत्यादि के सवालों के जवाब चाहिए थे।
साइंस में मैंने डार्विन का सिद्धांत,
बिग बैंग थ्योरी, जीवों की उत्पत्ति इत्यादि प्रकरणों को पढना शुरू कर दिया।
कुछ वैज्ञानिक तथा दार्शनिकों के ईश्वर पर निजी मत भी पढे। उसके बाद मैं सोशल
मीडिया से जुड़ गया,
वहाँ पर मुझे
मेरी विचारधारा के लोग मिलने लगे। मैंने भगत सिंह को पढ़ा तथा उन्हीं का बहुचर्चित लेख "मैं नास्तिक कयों हूँ"
पढ़ा तथा स्टीफन हांकिग के ईश्वर के अस्तित्व को नकारने के सिद्धांत भी पढे।
मेरे एक अच्छे मित्र हुये जो रिश्ते में भाई भी लगते हैं,
आपका शुभनाम बबलू उर्फ मानसिंह जी है। हम दोनों के बीच धर्म
तथा ईश्वर के अस्तित्व को लेकर डिबेट होती थी। धीरे-धीरे मेरे प्रयत्नों से बबलू
भी तार्किक तथा नास्तिक बन गया।
हम दोनों ने भूतों के अंधविश्वासों को तोड़ने तथा जानने के
लिए मध्यरात्रि को श्मशान का दौरा भी किया तथा खूब टोने - टोटके भी खाये। वर्तमान
में मैं एक घोर नास्तिक के रूप में जाना जाता हूँ।
देहदान की घोषणा
मृत्यु के पीछे सभी तरह की पांखडी प्रथाओं को लेकर मैं
चितिंत तथा दुखी था। इसका समाधान मुझे देहदान में नजर आया। देहदान के बारे में
मुझे मेरे फेसबुक मित्र ललित जी दार्शनिक से पता चला।फिर मैंने भी देह का दान
करने का निर्णय ले लिया। जब मैंने अपने परिवार से देहदान के बारे में बात की, तो
उन्होंने इसके लिए बिल्कुल मना कर दिया।
लेकिन इस संबंध में जब मैंने मेरे अजीज मित्र वैध खिवंराज जी परिहार से बात
की, तो उन्होंने मेरा समर्थन किया तथा देहदान घोषणा-पत्र पर गवाह के रूप में हस्ताक्षर
भी किये। इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ।
फिर मैंने घरवालों की इच्छा के विरूद्ध जाकर डॉ. एस.एन. मेडिकल
कॉलेज,
जोधपुर में देहदान की सारी औपचारिकताएं पुरी करने हेतु
दिनांक 13 नवम्बर, 2017 को स्वेच्छा से देहदान का पंजीकरण कर दिया। साथ ही साथ नेत्रदान के लिए भी
पंजीकरण करवा दिया।
कुछ समय पश्चात मुझे यह भी पता चला कि हम हमारी देहदान की
इच्छा को कानूनी रूप से रजिस्टर करवा सकते हैं। मैंने यह भी रजिस्टर विल-डिड करवा
दिया,
जिसके अनुसार मेरी प्राकृतिक मृत्यु पर सिर्फ मेडिकल कॉलेज
का ही अधिकार रहेगा तथा पुलिस तथा कानून देह को सुरक्षित मैडिकल कालेज को
पहुचायेंगे, फिर चाहे घर वाले इसके लिए कितना भी विरोध करें। इस कार्य हेतु महाराष्ट्र
के डॉ. जम्बाल रुक्मिणी जी ने देहदान रजिस्ट्री यानि वील-डिड के लिए मेरे खाते में
1,000 रूपये डाले,
जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ।
पहला रक्तदान
दिंनाक 21 फरवरी, 2018 के दिन मैंने स्वेच्छा से महात्मा गांधी हास्पिटल जोधपुर के
ब्लड बैंक में पहला रक्तदान किया। उस दौरान मेरे अजीज मित्र बस्ताराम जी सुमरा
मौजूद थे।
संतान मुक्त अर्थात बच्चा पैदा नहीं करने की शपथ
आज से लगभग डेढ वर्ष पूर्व जब मैं 20 वर्ष का था, तब मैंने सोशल
मीडिया के माध्यम से यह घोषणा कर दी की, यदि मैंने शादी कर ली, तो हम बच्चे पैदा नहीं करेंगे। इसको एंटिनेटालिज्म
फिलोसोफी बोलते हैं, इसमें दो सिद्धांत काम करते हैं –
1.
हम जन्म लेने वाले बच्चे की इच्छा नहीं पूछ सकते कि वह दुनिया में आना चाहता
हैं?
2.
दुनिया में दुख हैं, यह परम सत्य है, इससे बच्चे को गुजरना पडेगा। हम एक तरह से
उस पर जीवन थोप रहे हैं।
भारत की जनसंख्या भी बहुत है, तो बच्चे पैदा करने की जरूरत ही नहीं। जिन्हें बच्चे पालने का शौक है, वह पहले से मौजूद रिश्तेदारों के बच्चों को या अनाथालय के बच्चों को गोद ले
सकते हैं। हम हमारी प्रेमिका/ पत्नी को बच्चे पैदा कराके प्रेग्नेंसी/ प्रसव पीड़ा
नहीं देना चाहते और हम हमारे स्वंय के अस्तित्व पर ध्यान देते हैं। साथ ही बच्चा
पैदा करने से व्यक्ति की स्वतंत्रता खो जाती हैं, और इंसान जिम्मेदारियों तले दब जाता हैं।
मांसाहारी से शाकाहारी बनने की कहानी
मैं एक मांसाहारी परिवार तथा समाज से हूँ,
तो इस कारण मैं भी अज्ञानता में मांसाहार का सेवन करते आया
हूँ। मैं पहले मांसाहार के सेवन को लेकर असमंजस में था। लेकिन 22 वर्ष की उम्र में मेरा मांसाहार को लेकर नजरिया बिल्कुल
बदल गया। हदय परिवर्तन होने के कारण मैंने मांसाहार (मांस,
अंडे तथा मछली) का सदा के लिए पूर्ण रूप से त्याग कर दिया। और
मुझे इसकी बहुत खुशी भी है।
प्राकृतिक रूप से इंसान का शरीर मांसाहार के सेवन के लिए
बना ही नहीं है। शाकाहारी भोजन में आप स्वंय को हेल्दी तथा पशु की हत्या से बच
सकते हो। सिर्फ एक जीभ के स्वाद के कारण बेजुबान जानवर को खाना बुजदिली है।
पावन पर्व पर स्टेज पर भाषण
26 जनवरी, 2018 को गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर मैंने अपना पहला सामुदायिक भाषण प्रवेशिका
पब्लिक माध्यमिक विद्यालय, बिराई में दिया। उस भाषण में गणतंत्र दिवस की सभी को
शुभकामनाएं देते हुए संविधान के मुख्य निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का संक्षिप्त
जीवन परिचय दिया। साथ ही समाज में व्याप्त समाजिक कुरीतियों का उल्लेख किया। विशेषकर
मृत्युभोज (मौसर) जैसी कुरीति पर विस्तार
से उसके दुष्प्ररिणामों का उल्लेख किया। अंगदान तथा देहदान की महता पर भी विस्तार
से उल्लेख करते हुए उसके लाभों को उजागर किया।
उस दौरान भाषण समाप्त होने के बाद मेरे स्पीच से प्रसन्न
होकर तथा मेरा हौसला बढाने के लिए श्रीमान् रूपा राम जी परिहार तथा श्रीमान्
अर्जुन राम जी जाट ने मुझे स्वेच्छा से 200-200 रूपये दिये। भाषण देते समय
हमारे अजीज मित्र जसराज जी देवडा ने वीडियो रिकॉर्डिंग की। मैंने अपना 'सोशल अवेयरनेस जोधपुर' नाम से यूट्यूब चैनल बनाकर उस वीडियो को अपलोड कर दिया।
चैनल पर अपलोड सभी वीडियो देखने के लिए इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं।
हाल ही में मेरे फेसबुक मित्र आलोक कुमार जी ने मेरा देहदान
से सबंधित सवालों का साक्षात्कार किया, जो उन्हीं के यूट्यूब चैनल 'वर्जित सत्य'
पर वीडियो अपलोड की हुई हैं।
डिप्रेशन का दौर
मैं अपनी खूबियों के साथ अपनी कमियों तथा जिंदगी के उतार
-चढावों को सहजता से स्वीकार करते हुए उसे उजागर करूगाँ। दुनिया में ज्यादातर लोग
किसी न किसी तनाव से गुजरते हैं। मैं भी एक लंबे समय तक तनाव में रहा और काफी हद तक इससे निजात भी पाई। विस्तार से मैं अपने डिप्रेशन में गुजारे जीवन
के सुनहरे पलों को जो बर्बाद किये उसकी मार्मिकता आपसे साझा करना चाहूंगा।
मैं 2017 से पहले बिल्कुल सामान्य था।
लेकिन इस वर्ष के बाद मैं पढाई तथा रोजगार को लेकर चिंतित
था और अकेला रहने लग गया था तथा एक रूम के अदंर खुद को कैद कर लिया था और धीरे-धीरे
डिप्रेशन में चला गया। इस दौरान मैं जीवन-मृत्यु पर गहरा चिंतन करने लगा था। बुद्ध
की जीवनी पढी तो लगा कि जीवन की वास्तविकताएं दुखमय हैं। समय बीतने के साथ
डिप्रेशन धीरे-धीरे तेज होता गया तथा सिरदर्द रहने लगा था,
तो स्वाभाविक है कि उस दौरान खुदकुशी के विचार आते हैं, अर्थात मुझे भी खुदकुशी के विचार आते थे।
मैंने एक रात बहुत ही ज्यादा नशा (शराब,
गांजा तथा स्मैक)
एक साथ ले लिया था,
जिसके चलते
पुरी रात उल्टियां हुई। मैंने एक दिन फेसबुक पर कुछ इस प्रकार से पोस्ट अपलोड की,
"मैं सेक्स करने का इच्छुक हूँ, मेरे साथ जो भी लडकियाँ/ महिलाएँ सेक्स करना चाहती हैं,
मुझे इनबॉक्स कर देंवें और कृपया 'गे' (समलैंगिक) दूर रहें।" इस पोस्ट से मेरे घर वाले मेरी
स्पष्टवादिता सोच को देखकर भडक गये। और मेरी सोच उन पर नागवार गुजरी। मेरा मोबाइल
मुझसे छिन लिया और मेरी प्रोफाइल तथा पोस्टों के साथ छेडखानी की गई।
इसके दो दिन बाद मुझे मेरा मोबाइल वापस दे दिया। मेरी
पोस्टों पर बदलाव को देखकर मुझे बहोत गुस्सा आया और मैंने मेरा तथा मेरे पिताजी का
मोबाइल तोड़ दिया। उसके अगले दिन मेरी मानसिक हालात को ठीक नहीं समझते हुए, मुझे
मथुरादास माथुर हास्पिटल, जोधपुर के सीनियर मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया। डॉक्टर
ने मेरी मानसिक स्थिति जानने के लिए अलग-अलग साइक्लाजी टैस्ट लिये जिसमें मैं
नार्मल था।
मैंने डॉक्टर के सामने भी वही अपनी स्पष्टवादी बात कही, लेकिन डॉक्टर ने मेरी विचारधारा को समझे बिना ही मुझे पागल बोला तथा ज्यादातर
गहरी नींद की मेडीसिन दे दी। इन्हीं डॉक्टर से मेरा लगभग 4 महिने तक इलाज चलता रहा। इलाज के दौरान भी मैं बहुत उदास
तथा बैचेन रहता था।
जैसा मैंने 'सिजोफ्रेनिया' के लक्षण पढे हैं, वे मेरे साथ कहीं न कहीं हुये हैं। जैसे- समाज, परिवार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मेरे ऊपर अपने विचार थोप रहे थे,
और मुझे लगता मेरे बारे में सभी लोग गलत बाते करते हैं। मुझे बुरे-बुरे डरावने सपने भी आते थे। धीरे-धीरे मैं सामान्य होने लगा।
वर्तमान में मेरा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), जोधपुर में इलाज चल रहा है। इलाज के दौरान मुझे पता चला कि
मैं वास्तव में बायपोलर डिसआर्डर का पेशेंट हूँ। बायपोलर में कभी कभी आपको डिप्रेशन
होता हैं और कभी कभी मेनिया (उन्माद) तेजी
आना जिसमें आप सामान्य से बहुत ज्यादा खुश हो जाते हो,
तथा बड़ी-बड़ी रचनात्मक बातें करते हो आदि ऐसी अवस्था में
होता है।
मैंने अपने तनाव को निम्न क्रियाकलापों के माध्यम से कम
किया –
1.
योगा करके
2.
संगीत सुनके
3.
लेखन करके
4.
लोगों से बात करके
5.
व्यस्त रहके
6.
नये विषयों के बारे में जानके
7.
खुद की विचारधारा बनाके
8.
मोटिवेशनल स्पीच सुनने
दोस्तों! आपको मेरी आत्मकथा कैसी लगी, मेरे ब्लॉग ‘ज़िंदगीनामा:एक मामूली लड़के की आत्मकथा’ पर जाकर और कमेंट करके जरूर बताइयेगा तथा मुझे सुझाव
देना चाहे, तो भी कमेंट जरूर करें।